Astitva Ki Talaash



अस्तित्व की तलाश 


अगर एक लड़की से पूछा जाऐ  की उसे सबसे ज्यादा कौन सा ख्याल डराता है तो आपके हिसाब से वह ऐसी क्या चीज़ होगी। ज़िन्दगी छोटी हो लेकिन हसीन होनी चाहिए  ये वही ख्याल है जो हम सभी के ज़हन में आता है लेकिन क्या एक लड़की यही सोचती है अपनी ज़िंदगी के बारे में। क्या थोड़ी सी मेहनत उसके जीवन को हसीन बनाने के लिए काफी है। सोच कर देखिये या फिर जी कर देखिये''

उसके अस्तिव की खोज उसे कब शुरू करनी थी और उसने कब शुरू की।       " क्या कर लेगी लड़की है?"

लेकिन ये तो सब जानते थे की वो लड़की थी। क्या इससे ज्यादा किसीने जाना? 13  की उम्र में जब सभी किताबो को देखते है तब वो ये सोचती थी की रोटियां कल गोल कैसे बनाउंगी? क्योकि हार तो उसे यहाँ भी कुबूल हुई और उसने अच्छी रोटियां बना ही डाली। उसकी गोल रोटी उसकी कुंडली बनती गयी। उसकी काबिलियत स्कूल की रिपोर्ट कार्ड नहीं बल्कि घर में उसके हाथ के चाय पीने वाले बताते थे। अस्तित्व की खोज तो आज भी  जारी थी।  


एक कमरा जहा 3 , 4  देवता की तस्वीर थी। पंखा चले चले, उसके ख्याल हमेशा दौड़ते रहते थे।  थकान में जब उसकी नींद उससे पूछती होगी "कैसे किया आज तूने खुद को साबित?" क्या कहा होगा उन आँखों ने। "आज भी मुझे लगा शायद कोई आवाज़ लगा कर कहे देख यही चाहिए था तुझे मैं तेरे लिए ले आया

नींद ने फिर पूछा " तो बता, मिला ऐसा कुछ? उसने कहा नहीं लेकिन आज एक बड़ी अजीब सी बात हुई। घर पर कोई आया और मुझे पराया धन कहा। मैं तो उसकी बात समझ ही नहीं पायी। ये पराया धन क्या होता है? बात गौर करने वाली हैं।


समय के साथ तू कदम उठा, तेरी खोज तू कर,
ज़िन्दगी सबको मौका देती है तू दिखा दे उसे उठ कर।  

बाजार में मेला सा लगा था अब हाथ घोड़े से खेलना तो लड़को का काम है यही सिखाया गया था। ध्यान टिका था की कोई बाजार से सुन्दर सुन्दर रंग बिरंगी चुरिया ला दे। माँ पहनती है तो मै भी पहनूंगी। पिताजी कहते है लड़की घर में अच्छी लगती है तो चूड़ी लेने कौन जाये? माँ तो घर से बहार पैर भी नहीं रखती, नहीं नहीं माँ तो रसोई से बहार पैर नहीं रखती। क्या माँ ने कोशिश की होगी अपने अस्तित्व को पहचानने के लिए? क्या उसने कोशिश की अपने पैरो को रसोई से बहार निकालने की? ये सवाल भी तभी पनपा जब बात आर या पार वाली थी।

मेले के शोर में उसके साथ जाने कितनी आवाज़े दबी होंगी। शिकायत उसने की किसी और ने। 

समय की तू गुलाम नहीं, तू वक्त दे उसको
कर तपस्या अस्तित्व की, खुदा बना ले खुद को।

बात गौर करने वाली है की,

हाथो में हल्दी तभी लग गयी थी,वो १६ की उम्र में। माँ ने सिखाई थी जैसे खाने में नमक हल्दी कभी बराबर नहीं होते वैसे ही औरत और मर्द कभी एक बराबर नहीं होते। भाई का बस्ता समेटते समेटते अपनी इक्छाएं समेट ली। किताबे खोल कर देखा तो एहसास हुआ उसको, की अभी एक कदम बाकि रह गया लेकिन कैसे? माँ पिताजी ने तो हर जगह टोका। फिर पढ़ाई कैसे छूट गयी, इसके लिए किसीने क्यों नहीं लगाई डांट? सच का सामना तब हुआ जब माँ ने पीछे से आवाज़ लगाई " किताबे ही पलटी रहेगी या आकर खाना भी बनाएगी"


ज़िन्दगी का सामना उसने किया है चाहे फल मिले मिले। नारी की हकीकत उसके सिवा कोई नहीं जान सका। जिसका हक़ है वो मिले तो कैसा लगता है अपने घर में मौजूद अपनी माँ से पूछो   लेकिन यहाँ गौर करने वाली बात ये नहीं सोचो बिना उन चीज़ो के अपना अस्तित्व बनाना कैसा होता होगा। नारी का सम्मान इसलिए ज़रूरी नहीं क्युकी वह नारी है, नारी का सम्मान इसलिए ज़रूरी है क्युकी उसके पास वो नहीं जो तुम्हारे पास है फिर भी वह अपने अस्तित्व की तलाश करती रहती है। iChhori उन सभी नारियो का सम्मान करता है जिन्होंने अपने जीवन को अपने अस्तित्व का पथ बना लिया।


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